पंचतंत्र एक संस्कृत नीतिकथाओं का संग्रह है, जिसकी रचना विष्णु शर्मा ने की थी। यह कहानियों का संग्रह भारत के प्राचीन साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कहानियां मानव व्यवहार, समाज और राजनीति पर प्रकाश डालती हैं।
पंचतंत्र की कहानियों में जानवरों और पक्षियों को अक्सर मानवीय गुणों और व्यवहार के साथ चित्रित किया जाता है। इन कहानियों का उद्देश्य पाठकों को नैतिकता, बुद्धिमत्ता और व्यवहार के बारे में सिखाना है।
पंचतंत्र की कहानियों को पाँच भागों में विभाजित किया गया है:
- मित्रभेद - इस भाग में, मित्रों के बीच मतभेद और संघर्ष के बारे में कहानियां हैं।
- मित्रसंप्राप्ति - इस भाग में, अच्छे और बुरे मित्रों के बारे में कहानियां हैं।
- कौकोलूकीयम् - इस भाग में, कौवे और उल्लुओं के बीच संघर्ष के बारे में कहानियां हैं।
- लब्धप्रणाश - इस भाग में, प्राप्त चीजों के खो जाने के बारे में कहानियां हैं।
- अपरीक्षितकारकम् - इस भाग में, बिना परखे हुए काम करने के नुकसान के बारे में कहानियां हैं।
पंचतंत्र की कुछ प्रसिद्ध कहानियां हैं:
- उल्लू और कौआ - इस कहानी में, उल्लू अपने चतुराई से कौवे को धोखा देकर उसकी मौत का कारण बनता है।
- कछुआ और खरगोश - इस कहानी में, कछुआ अपनी बुद्धिमत्ता और धैर्य से खरगोश को दौड़ में हराता है।
- शेर और भेड़िया - इस कहानी में, एक शेर और एक भेड़िया की दोस्ती का वर्णन किया गया है।
- मोर और सांप - इस कहानी में, एक मोर अपने रूप और नृत्य से सांप को लुभाता है और उसे मार देता है।
- माँ काकी और उसके दो बेटों की कहानी - इस कहानी में, एक माँ अपने दो बेटों को शिक्षा और नैतिकता के महत्व के बारे में सिखाती है।
पंचतंत्र की कहानियां आज भी उतनी ही लोकप्रिय हैं जितनी कि प्राचीन काल में थीं। ये कहानियां बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए शिक्षाप्रद और मनोरंजक हैं।