April 11, 2022
एक महान संत हुआ करते थे जो अपना स्वयं का आश्रम बनाना चाहते थे जिसके लिए वो कई लोगो से मुलाकात करते थे | एक जगह से दूसरी जगह यात्रा के लिए जाना पड़ता था | इसी यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात एक साधारण सी कन्या विदुषी से हुई | विदुषी ने उनका स्वागत किया और संत से कुछ समय कुटिया में रुक कर आराम करने की याचना की | संत उसके मीठे व्यवहार से प्रसन्न हुए और उन्होंने उसका आग्रह स्वीकार किया |
विदुषी ने संत को अपने हाथो का स्वादिष्ट भोज कराया | और उनके विश्राम के लिए खटिया पर एक दरी बिछा दी | और खुद फर्श टाट बिछा कर सो गई | विदुषी को सोते ही नींद आ गई | उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था कि विदुषी चैन की सुखद नींद ले रही हैं | उधर संत को खाट पर नींद नहीं आ रही थी | उन्हें मोटे नरम गद्दे की आदत थी जो उन्हें दान में मिला था | वो रात भर विदुषी का सोच रहे थे कि वो कैसे इस कठोर जमीन पर इतने चैन से सो सकती हैं |
दुसरे दिन सवेरा होते ही संत ने विदुषी से पूछा कि – तुम कैसे इस कठोर धरा पर इतने चैन से सो रही थी |तब उसने बड़ी सरलता से उत्तर दिया – हे गुरु देव ! मेरे लिए मेरी ये छोटी सी कुटिया एक महल के समान ही भव्य हैं | इसमें मेरे श्रम की महक हैं | अगर मुझे एक समय भी भोजन मिलता हैं तो मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ | जब दिन भर के कार्यों के बाद मैं इस धरा पर सोती हूँ तो मुझे माँ की गोद का आत्मीय अहसास होता हैं | मैं दिन भर के अपने सत्कर्मो का विचार करते हुए चैन की नींद सो जाती हूँ | मुझे अहसास भी नहीं होता कि मैं इस कठोर धरा पर हूँ |
यह सब सुनकर संत जाने लगे | तब विदुषी ने पूछा – हे गुरुवर ! क्या मैं भी आपके साथ आश्रम के लिए धन एकत्र करने चल सकती हूँ ? तब संत ने विनम्रता से उत्तर दिया – बालिका ! तुमने जो मुझे आज ज्ञान दिया हैं उससे मुझे पता चला कि चित्त का सुख कहाँ हैं | अब मुझे किसी आश्रम की इच्छा नहीं रह गई |
यह कहकर संत वापस अपने देश लौट गये और एकत्र किया धन उन्होंने गरीबो में बाँट दिया और स्वयं एक कुटिया बनाकर रहने लगे |